सुबह से रात और रात से यु ही सुबह हो जाती है,
ये अकेलापन खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है।
ये अकेलापन मुझे भाने लगा अब,
करीब जाना मुझे चौकाने लगा अब।
यूँ ही बेवजह न मुझे वो खोजता होगा,
शायद उसे भी ये अकेलापन नोचता होगा।
जिन्दगी मे और कुछ मेरा हो या ना हो,
लेकिन गलती हमेशा मेरी ही होती हैं।
सबने साथ वहीं तक निभाया,
जहां तक उनका मतलब था ..!!
अकेले जीना सीख जाता है,
इंसान जब उसे पता लग जाता है की अब
साथ देने वाला कोई नहीं है।
अकेलेपन का दर्द भी अजीब होता है,
दर्द तो होता है लेकिन दर्द के आँसू आँखों से बाहर नहीं आते।
न ढूंढ मेरा किरदार दुनिया की भीड़ में,
वफादार तो हमेशा तन्हा ही मिलते हैं।
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