दीवाली पर कविता हिंदी में (Deepawali Poem in Hindi) Poem For Kids

दीवाली पर हिंदी कविता | Diwali Kavita or Poem 2023 in Hindi:- यह पर्व सभी त्यौहारों का राजा माना जाता हैं | कार्तिक माह की अमावस्या की रात को दीपों से सजाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व माना जाता हैं | हर तरह खुशियों का आलम होता हैं अपनों से मिलने का सु:खद अनुभव होता हैं | हर वर्ष इस त्यौहार का हर्ष उल्लास से इन्तजार करते हैं, और कई सपनों के साथ इसे मनाते हैं |

आज के व्यस्त समय में और रुपये पैसों के इस दौर में घर के बच्चे अपनों से दूर जाकर जीवन का संघर्ष करते हैं और घर में बूढ़े माँ बाप उनकी आस लगाये दरवाजे पर टकटकी लगाये बैठे रहते हैं, ऐसे में क्या दीपावली के फटाके, क्या पकवान की महक वो सभी तो बस कुछ पल साथ बिताना चाहते हैं, आधुनिक दौर में त्योहारों की परिभाषा बदल गई हैं धार्मिक रीति रिवाज़ तो बहाना हैं बस किसी तरह अपनों के करीब आना हैं |

Poem for Kids on Deepawali in Hindi

1. दीवाली पर हिंदी कविता (Diwali Poem in Hindi)

मेरी दीपावली (व्यस्त जीवन की भावना)

ना फुलजड़ी फटाके बुलाते मुझे 

ना गुलाब जामुन की खुशबू ललचाती मुझे

ना फुलजड़ी फटाके बुलाते मुझे 

ना गुलाब जामुन की खुशबू ललचाती मुझे

ना नए कपड़ों की चाहत खीचें मुझे 

ना गहनों चमक लुभाए आये मुझे

मुझे तो चाहिए कुछ अनमोल घड़ी 

जब फिर से जुड़ती अपनों से कड़ी

दिवाली की रंगत ना भाती मुझे 

बस माँ की गोद ही याद आती मुझे

नहीं वो बचपन की दिवाली सजे 

बस मुझे मेरे अपनों का साथ मिले 

बस साथ मिले ||

2. “आई रे आई दीपावली हैं आई”

आई रे आई जगमगाती रात हैं आई

दीपों से सजी टिमटिमाती बारात हैं आई

हर तरफ है हँसी ठिठोले

रंग-बिरंगे,जग-मग शोले

परिवार को बांधे हर त्यौहार

खुशियों की छाये जीवन में बहार

सबके लिए हैं मनचाहे उपहार

मीठे मीठे स्वादिष्ट पकवान

कराता सबका मिलन हर साल

दीपावली का पर्व सबसे महान

फिर से सजेगी हर दहलीज़ फूलों से 

फिर महक उठेगी रसौई पकवानों से

मिल बैठेंगे पुराने यार एक दूजे से 

फिर से सजेगी महफ़िल हँसी ठहाको से

चारों तरफ होगा खुशियों का नज़ारा 

सजेगा हर आँगन दीपक का उजाला

डलेगी रंगों की रंगोली हर एक द्वार 

ऐसा हैं हमारा दीपावली का त्यौहार

दीपावली पर कविता

दीप जलाओ दीप जलाओ

आज दिवाली रे

खुशी खुशी सब हंसते आओ आज दिवाली रे,

मैं तो लूंगा खेल खिलौने,

तुम भी लेना भाई,

नाचो गाओ खुशी मनाओ

आज दिवाली आई

आज पटाखे खूब जलाओ

आज दिवाली रे

दीप जलाओ दीप जलाओ

आज दिवाली रे

नए-नए मैं कपड़े पहनू

खाऊं खूब मिठाई

हाथ जोड़कर पूजा कर लूँ 

आज दिवाली आई..!

3. दीप से दीप जले (Deep Se Deep Jale)

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।

लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।

गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।

उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।

वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।

युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।

4. जगमग-जगमग

हर घर, हर दर, ब़ाहर, भींतर,

नीचें ऊ़पर, हर जग़ह सुघ़र,

कैंसी उजियाली हैं पग़-पग़,

जग़मग जगमग़ जगमग़ जगमग!

छज्जो मे, छत मे, आलें मे,

तुलसी कें नन्हे थाले मे,

यह कौंन रहा हैं दृग़ को ठग़?

जगमग़ जगमग़ जगमग जगमग़!

पर्वत मे, नदियो, नहरो मे,

प्यारीं प्यारीं सी लहरो मे,

तैरतें दीप कैंसे भग-भग़!

जगम़ग जगमग़ जगमग जगमग़!

राजा के घर, कंग़ले कें घर,

है वहीं दीप सुन्दर सुन्दर!

दीवाली की श्रीं हैं पग-पग़,

जगमग़ जगमग जगमग़ जगमग 

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